
17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ जब 1 सितंबर को पटना में खत्म हुई, तब तक तेजस्वी यादव तीन बार खुद को मुख्यमंत्री बना चुके थे — कम से कम घोषणाओं में।
उधर राहुल गांधी ने लोकतंत्र बचाने की बात तो की, लेकिन जब सीएम फेस के सवाल पर माइक बढ़ा, तो उन्होंने माइक ही पीछे खींच लिया।
अब जनता पूछ रही है – “राहुल जी, सीएम का नाम नहीं लेंगे क्या? डर किस बात का है?”
तेजस्वी बोले “मुझे सीएम बनाओ”, राहुल बोले “मैं बम फोड़ूंगा”
यात्रा के हर पड़ाव पर तेजस्वी यादव जनता से सीधा वादा करते रहे – “हमको सीएम बनाओ, राहुल को पीएम।”
साथ में बाइक राइड, हाथ में माइक और आंखों में सपना।
लेकिन राहुल गांधी?
उन्होंने यात्रा के आख़िर में सिर्फ ये कहा – “अब हम हाइड्रोजन बम फोड़ेंगे।”
अब पब्लिक सोच में है – “हाइड्रोजन बम पहले दिल्ली फोड़ेगा या महागठबंधन?”
महागठबंधन: बाहर से चमकदार, अंदर से खौलता कड़ाही
देखने में सब एकजुट – तेजस्वी, प्रियंका, अखिलेश, स्टालिन, रेवंत रेड्डी, हेमंत सोरेन…लेकिन तेजस्वी के बार-बार खुद को “ओरिजिनल सीएम” बताने और राहुल की रहस्यमयी चुप्पी ने साफ कर दिया कि सब कुछ ठीक नहीं है।
राहुल गांधी का हर सवाल पर “All is well” टाइप जवाब देना, दरअसल बताता है – कुछ तो गड़बड़ है दयानंद।
सीट शेयरिंग: कुर्सी कम है, ख्वाहिशें ज्यादा
कांग्रेस चाहती है – 70 सीटें
आरजेडी देने को तैयार – 60 भी नहीं
CPI(ML) और Left पार्टियों का भी जोर – “हमें भी तो सीट दो बाबू!”
अब गठबंधन का माहौल ऐसा है जैसे बारात में खाना कम पड़ जाए और हर रिश्तेदार बोले – “पापड़ तो हमें ही मिला!”
जातीय गणित में भिड़ी रणनीतियाँ
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आरजेडी: MY + कुशवाहा + Extremely Backward Vote
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कांग्रेस: OBC आउटरीच और SC/ST फोकस
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CPI(ML): भूमिहीन-मजदूर के वोट
अब सबकी रणनीति एक-दूसरे की ताकत काट रही है। जैसे मैच में तीन बैट्समैन एक ही बॉल पर शॉट मारने आएं — नतीजा? रन आउट पक्का!
नीतीश कुमार: जो नहीं बोले, वही सबसे ज़्यादा बोल गए
जहां महागठबंधन सीएम फेस पर उलझा है, वहां NDA कह चुका है –“हमारे पास नीतीश कुमार हैं, और वही फिर से होंगे।”
अब जनता कह रही है – “कम से कम एक नाम तो तय है भाई!”
नीतीश भले कैमरे पर कम दिखते हों, लेकिन उनके ‘मैं स्टेबल हूं’ वाले सिग्नल ने जनता को भरोसे का रास्ता दिखाया है।
बम फूटा या गुब्बारा निकला?
राहुल गांधी का ‘हाइड्रोजन बम’ बयान था तो तगड़ा, पर उसकी दिशा ही तय नहीं हुई। तेजस्वी को लेकर चुप्पी, सीएम फेस पर गोलमोल बयान, और सीटों की सौदेबाज़ी ने ये साफ कर दिया कि बम तो फूटा नहीं, गठबंधन की हवा जरूर निकल गई।
वोटर देख रहा है – कौन कितना स्पष्ट है?
महागठबंधन में जितनी ज्यादा स्पीच, उतनी ही कम क्लैरिटी और NDA में जितनी कम बातचीत, उतनी ही ज्यादा तैयारी। राजनीति में यही फर्क सरकार बना देता है।
तेजस्वी के बोल, राहुल की भूल, नीतीश की फूल झाड़ू चाल
2025 का चुनाव नजदीक आ रहा है। तेजस्वी अभी से सीएम बनने की लाइन में हैं।
राहुल गांधी – लाइन बनाने में लगे हैं। और नीतीश? वो लाइन से बाहर खड़े हैं, लेकिन गेट उन्हीं के पास है।
साफ है — अगर महागठबंधन ने वक्त रहते स्पष्टता नहीं दिखाई, तो सारा फायदा NDA और नीतीश कुमार की झोली में जाएगा।